सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-९ महास्नेह

गतांक से आगे............स्नेहना जीवना वल्या वर्णोंपचयवर्धना:,स्नेहा ह्येते च विहिता वातपित्तकफापहा: (८७)चार महास्नेह- घी, तेल, वसा (चर्बी), और मज्जा ये चार प्रकार के  स्नेह अर्थात चिकने पदार्थ हैं.इनका प्रयोग पीने, मालिश करने, बस्ती (गुदा मार्ग से लेने), एवं नाक द्वारा नस्य लेने में होता है. 
इनके गुण - ये चारों शरीर में चिकनाई पैदा करते हैं. जीवन शक्ति बढाते हैं. बल और वर्ण (कांति) और शरीर को मांस वृद्धि में सहायक होते हैं, ये चारों वात, पित्त, कफ के विकारों को नष्ट करते है. शंखिनी श्वेतवुन्हा सुश्रुत में मुलेठी का मूळ उत्तम लिखा है. परन्तु विरेचन के लिए फल ही उत्तम है, नस्त: प्रच्छेदन= शिरोविरोचना, नस्य लेकर छींक लेना. महा स्नेहों में सबसे प्रथम घी (सर्पि:) का पाठ है. वह सब स्नेहों से उत्तम है. 

3 टिप्पणियाँ:

Unknown on 12 अक्तूबर 2009 को 9:06 pm बजे ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी दे रहे हो प्रभु !

धन्यवाद..........

परमजीत सिहँ बाली on 12 अक्तूबर 2009 को 10:08 pm बजे ने कहा…

बढिया जानकारी।आभार।

ब्लॉ.ललित शर्मा on 12 अक्तूबर 2009 को 10:10 pm बजे ने कहा…

थाने धन्यवाद अलबेला जी, आ नवी दुकान खोली हे, थे ही आज का पहला ग्राहक हो, थोड़ो टैम लागसी पण चाल जासी। आभार

 

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