गतांक से आगे................
सिद्धा वराहनिर्युहे यवागूरवृहणि मता
गवेधुकानाम भ्रिषटानां कर्षणिया समाक्षिका (२५)
११. वराह (सूअर -शुकरकंद(कशेरू) के) मांस या गुर्दे से से सिद्ध पेया मांस बढाती है.
12 . भुने हुए गवेधुका (मुनि-अन्न सांवा) के साथ तैयार कि यवागू माक्षिक (शहद) के साथ ली हुयी मोटापा कम करती है.
१३.अधिक तिल और घी वाली नमक के साथ तैयार की गई यवागू स्नेहनी (शरीर में चिकनाई पैदा करके रुक्षता का नाश करने वाली) होती है, इसमें तिल अधिक और चावल कम डाले जाते हैं.
१४. कुश (दाभ) तृण, तथा आवलों से के रस तथा सांवा चावलों को पकाकर तैयार की गई पेया विरुक्षणि अर्थात रूखापन पैदा करती है. वह अधिक चिकनाई से पैदा हुए दोषों को दूर करती है.
१५. दस मूली से पकाई हुयी यवागू (पेया) खांसी, हिचक, दमा, और कफ को नाश करती है.
बुधवार, 4 नवंबर 2009
महर्षि चरक एवं चरक संहिता - 26-यवागू पेय
Author: ब्लॉ.ललित शर्मा
| Posted at: 5:41 pm |
Filed Under:
चरक एवं चरक संहिता
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2 टिप्पणियाँ:
आपको इस प्रयास के लिये साधुवाद। डा.रूपेश श्रीवास्तव(aayushved.blogspot.com) इस विषय के गहरे जानकार हैं यदि उचित जानें तो उनसे सम्पर्क करें।
सादर
वराह (सूअर -शुकरकंद(कशेरू) के) मांस या गुर्दे से से सिद्ध पेया मांस बढाती है. ye shakar kand hai ya suar hai!!! agar suar hai to hame nahi ghatanaa mans||| baaki sab main leta hun!~!!
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