दद्यात्सातीविषं पेयाम सामे साम्लां सनागराम,
श्र्वदंष्ट्राकंटकारिभ्याम मूत्रकृच्छ सफाणिताम् (२२)
अर्थात ..............
६. आमातिसार में अनारदाना से खट्टी पेया अतिविद्या (अतीस) तथा नागर (सोंठ) मिलाकर देना चाहिए.
७.मूत्र कृच्छ रोग में श्वदंट्रा (गोखरू) और कंटकारी छोटी कंटेरी के साथ पकाकर उसमे फाणित (राब) मिलाकर पेया देनी चाहिए.
८. विडंग (बाय विडंग), पिप्पली मूळ (पीपला मूळ), सह्न्जना , शोमांजन, मिर्च (काली गोल मिर्च) के साथ तक्र (छाछ) में तैयार कर यवागू में सुवर्चिक (सज्जिखर) डालकर सेवन करने से वह पेट के क्रीमी का नाश करती है.
९.मृद्वीका(दाख किशमिश) सारिवा (अनंत मूल) लाजा (धान की खील) पिप्पली (पीपल) मधु (शहद), और नागर (सोंठ या नागर मोथा) इनके साथ पकाई गई पेया, पिपासा (प्यास एवं तृष्णा) रोग का नाश करती है,
१०. सोमराजी (काली जीरी) के साथ पकाई पेया मांस बढ़ाने वाली होती है.
जारी है ....................................
1 टिप्पणियाँ:
भाई ललितजी आपकी ये दवाइयाँ तो कोल्लेक्ट करने योग्य हैं बहुत ही सुन्दर सच्ची में!!!
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