गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

नूतन वर्ष २०१० की आपको अशेष शुभकामनायें अपार!!

नवल धवल सूरज से आलोकित हो घर आँगन परिवार नूतन वर्ष २०१० की आपको अशेष शुभकामनायें अपार बाधाएं दूर हो जीवन की, नित प्रेम सुरभि का हो संचार मन में करुणा व्यापे निस दिन बढे सुखों का  कोषागार &nb...
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गुरुवार, 5 नवंबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता - 27-यवागू पेय

गतांक से आगे.............. १६.यमक अर्थात घी और तेल बराबर-बराबर लेकर उसमे चावलों को भुन कर मद्य के साथ पकाई यवागू पक्काशय की पीड़ा को दूर करता है. १७.शाको ,तिल, और उड़द इनसे बनी यवागू मल लेन में उत्तम है. १८. जामुन ,आम की गुठली, कैथ का गुद्दा, अम्ल (खट्टी कांजी), और बिल्व (बेल गिरी) इनसे बनी यवागू दस्त रोकने वाली कही जाती है. १९.क्षार (खार, जवासार), चित्रक (चीता), हिंगू (हिंग), अम्लवेतस (अमल वेद) इसमें बानी यवागू भेदनी अर्थात कब्जकुशा, दस्त लाने वाली होती है. २०.अभय (हरड) पीपला मूळ, और विश्व (सोंठ) ...
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बुधवार, 4 नवंबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता - 26-यवागू पेय

गतांक से आगे................ सिद्धा वराहनिर्युहे यवागूरवृहणि  मता गवेधुकानाम भ्रिषटानां  कर्षणिया समाक्षिका (२५) ११. वराह (सूअर -शुकरकंद(कशेरू) के) मांस या गुर्दे से से सिद्ध पेया मांस बढाती है. 12 . भुने हुए गवेधुका (मुनि-अन्न सांवा) के साथ तैयार कि यवागू  माक्षिक (शहद)  के साथ ली हुयी  मोटापा कम करती है. १३.अधिक तिल और घी वाली नमक के साथ तैयार की गई यवागू  स्नेहनी (शरीर में चिकनाई पैदा करके रुक्षता का नाश करने वाली)  होती है, इसमें तिल अधिक और चावल कम डाले जाते...
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मंगलवार, 3 नवंबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता - 25-यवागू पेय

गतांक से आगे.......... दद्यात्सातीविषं पेयाम सामे साम्लां सनागराम, श्र्वदंष्ट्राकंटकारिभ्याम मूत्रकृच्छ सफाणिताम् (२२) अर्थात .............. ६. आमातिसार में अनारदाना से खट्टी पेया अतिविद्या (अतीस) तथा नागर (सोंठ) मिलाकर देना चाहिए. ७.मूत्र कृच्छ  रोग में श्वदंट्रा (गोखरू) और कंटकारी छोटी कंटेरी के साथ पकाकर उसमे फाणित (राब) मिलाकर पेया देनी चाहिए. ८. विडंग (बाय विडंग), पिप्पली मूळ (पीपला मूळ), सह्न्जना , शोमांजन, मिर्च (काली गोल मिर्च) के साथ तक्र (छाछ) में तैयार कर यवागू में सुवर्चिक (सज्जिखर)...
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रविवार, 1 नवंबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता - 24-यवागू पेय

गतांक से आगे.............. दुधित्थबिल्वचान्गैरीतक्रदाडिमसाधिता पाचनी ग्राहिणी पेया, सवाते पान्चमूलिकी (१९) अर्थात--- यदि अतिसार का रोग या संग्रहणी वात विकार सहित हो जाये तो पञ्च मूळ  अर्थात छोटी कटेरी, गद्दी, कंटेरी, शालपर्णी, पृश्नीपर्णी और गोखरू एस पञ्च मूळ  के साथ पया बनानी चाहिए. शालिपर्णी (सालवन), बला (खरेंटी) बिल्व(बेलगिरी), पृश्नीपर्णी (पिठवन), इन औषधियों से साधित यवागू (पेया), दाडिम (अनार दाना) से खट्टी करके पान करें तो वह पित्त और श्लेष्म (कफ) के अतिसार में हित कारक होती है. बकरी...
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शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता 23-यवागू पेय

गतांक से आगे............. पिप्पली पिप्पलीमूळ च्वयाचित्रकेनागरै: यवागुर्दोंपनीया स्याच्छुलघ्निम चोपसाधिता (१८) अर्थात- दधित्य (कैथ), बिल्व (बेलगिरी), चान्गेरी( चूका), तक्र(छाछ), दाडिम (अनारदाना) इन औषधियों के योग से तैयार की हुई यवागू भोजन को पचाने वाली, और ग्राहणी अर्थात दस्तों को बंद करने वाली होती है. अधिक खट्टी ना हो इसलिए छाछ में पानी मिला देना चाहिए. जारी है................
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शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-22 यवागू कल्पना एवं उसके गुण

गतांक से आगे............. अत ऊर्ध्वं प्रवक्षयामी यवागुर्विविधौषधा, विविधानाम विकाराणाम तत्साध्यानाम निवृत्तये(१७) यवागू कल्पना एवं उसके गुण- अब आगे नाना प्रकार की औषधियों से तैयार की जाने वाली उन औषधियों से अच्छा होने वाले अनेक  रोगों को दूर करने के लिए यवागुओं (लाप्सी पेय) का वर्णन करेंगे. मल शोधन के पश्चात् यवागू या पेय पदार्थ का वर्णन इस लिए होता है कि पंच कर्मों के सम्यक योग न होने से जठराग्नि मंद हो जाती है. उसको तेज करने के लिए पेयों का विधान है. पेयों से जठराग्नि स्थिर हो जाती है. अन्ने...
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