शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता 23-यवागू पेय

गतांक से आगे............. पिप्पली पिप्पलीमूळ च्वयाचित्रकेनागरै: यवागुर्दोंपनीया स्याच्छुलघ्निम चोपसाधिता (१८) अर्थात- दधित्य (कैथ), बिल्व (बेलगिरी), चान्गेरी( चूका), तक्र(छाछ), दाडिम (अनारदाना) इन औषधियों के योग से तैयार की हुई यवागू भोजन को पचाने वाली, और ग्राहणी अर्थात दस्तों को बंद करने वाली होती है. अधिक खट्टी ना हो इसलिए छाछ में पानी मिला देना चाहिए. जारी है................
Continue Reading...

शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-22 यवागू कल्पना एवं उसके गुण

गतांक से आगे............. अत ऊर्ध्वं प्रवक्षयामी यवागुर्विविधौषधा, विविधानाम विकाराणाम तत्साध्यानाम निवृत्तये(१७) यवागू कल्पना एवं उसके गुण- अब आगे नाना प्रकार की औषधियों से तैयार की जाने वाली उन औषधियों से अच्छा होने वाले अनेक  रोगों को दूर करने के लिए यवागुओं (लाप्सी पेय) का वर्णन करेंगे. मल शोधन के पश्चात् यवागू या पेय पदार्थ का वर्णन इस लिए होता है कि पंच कर्मों के सम्यक योग न होने से जठराग्नि मंद हो जाती है. उसको तेज करने के लिए पेयों का विधान है. पेयों से जठराग्नि स्थिर हो जाती है. अन्ने...
Continue Reading...

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-21- अनुवासन

गतांक से आगे........... अत एवौषधगनात्संकल्प्यमनुवासनम . मरुपघ्नमिति प्रोक्तं संग्रह: पान्चकर्मिक (१४) अनुवासन-जिन औषधियों का उपदेश बस्ती कर्म के लिए किया गया है, वात नाशक होने से उनका ही अनुवासन वस्ति के लिए भी प्रयोग करना चाहिए. इस प्रकार नस्य, वमन, विरेचन, आस्थापन, अनुवासन, इन पांचों शोधन कर्मो के लिए संक्षेप में औषधियों का उपदेश कर दिया गया है.जिन रोगियों के शरीर में दोष संचित हों, उनको दूर करने के लिए स्नेहन और स्वेदन कराकर मात्र और काल का विचार करते हुए, शिरोविरेचन,वमन,विरेचन,निरुहण, और अन्वासन,...
Continue Reading...

बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता 20 - विरेचक द्रव्य

गतांक से आगे.......... त्रिवृताम् त्रिफलाम दंतीं निलिनीम सप्त्लाम वचाम कम्पिल्कम गवाक्षीं च क्षीरणिमुदकीर्यकाम (९) विरेचक द्रव्य -- त्रिवृता (त्रिवि, निसोत), त्रिफला, (हरड, बहेडा, आंवला), दंती (जमाल घोटा), नीलिनी (नील), सप्तला(सातला), वचा (वच), कम्पीलक( कमीला) गवाक्षी (इन्द्रायण), क्षीरणी (हरी दुधली, दुग्धिका, दूधी, चोक), उद्कीर्यका( वृक्ष करंज, कंजा, नाटा, करंज, करन्जुआ), पीलू, आरग्वध, (अमलतास) द्राक्षा (मुनक्का), द्रवन्ति (बड़ी दंती, जमाल घोटे का बड़ा भेद), निचुल (हिज्जल फल, समुद्र फल), ...
Continue Reading...

महर्षि चरक एवं चरका संहिता-19- वस्ती देने योग्य द्रव्य

गतांक से आगे........... पाटलीं च अग्नि मन्थम च बिल्वं श्योनाकमेव च. काश्मर्यम शाल पर्णी च पृश्नीपर्णी निदिग्धिकाम (११) वस्ति देने योग्य द्रव्य- पाटला (पाढ़, पाढ़ल), अग्नि मन्य(अरणी), विल्व (बेल, बेलगिरी), श्योनाक (अर्लू, टेंटू, सोना पाठा), काश्मर्थ (गाम्भारी, धमार),शाल पर्णी ( सालवन), पृश्नीपर्णी ( पृष्टपर्णी,पीठापर्णी, पिठ्वनी), निदिग्धा (छोटी कटेरी, कन्तेली, भट कटैया), बला(खरैटी),  श्र्वदंष्ट्रा (गोखरू), वृहती (बड़ी कंटेली ), एरंड, पुनर्नवा (सांठी, आटा-साटा), यव (जौ) कूल्त्थ (कुल्थी) कोल...
Continue Reading...

सोमवार, 26 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-18- अध्याय २-वमन कारक द्रव्य

गतांक से आगे........... मदनं मधुकं निम्बं जिमूतं कृतवेधनं. पिपलीकूटजेक्ष्वाकूणयेला धामार्गवाणी (७) उपस्थिते श्लेषमपित्ते व्याधावामाशयाश्रये वमनार्थम प्रत्यंजीत भीषग्देहमदुषयम (८) वमन कारक द्रव्य- मदन (मैन फल), मधुक (मुलैठी) निम्ब (नीम), जीमूत (कडुई, तुरई, देवदाली), कृत्वेधन (तोरई) पीप्प्ली (पिपली), कूताज (कूड़ा ,इन्द्रजौ) इक्ष्वाकु ( कडुआ तुम्बा), एला ( बड़ी इलायची), धामागर्व (कडुई तुरई) इन औषधियों  अमाशय में श्लेषपित्त की व्याधि हो, तब वैद्य इस प्रकार करे कि देह में व्याधि उत्पन्न ना हो. जारी...
Continue Reading...

रविवार, 25 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-१७- अध्याय २- शिरोविरेचन-अपामार्ग तंडूलीय

गतांक से आगे............ अध्याय  २. इस अध्याय का नाम "अपामार्ग तंडूलीय"है. इसके विवरण हेतु भगवान आत्रेय ने उपदेश किया हिल अपमार्गास्य बीजानि पिपप्लीर्मरिचानि च . विडंगान्याथ शिग्रुणि सर्व्पंस्तुम्बूरुणि च ..(३) शिरोविरेचन द्रव्य- अपामार्ग, (औंगा, चिरचिटा, पूठकंडा), के बीज, पिप्पली (पीपल, बड़ी, छोटी), मिर्च (काली मिर्च, गोल, या सफ़ेद,) विडंग(वाय विडंग), शिग्रु (सहजने के बीज), सर्षप( सरसों के बीज), तुम्बुरु (नेपाली धनिया,तुमरू) अजाजी (जीरा), अजगंधा( अजमोद) पीलू (पीलू के बीज), एला (छोटी इलायची)...
Continue Reading...

शनिवार, 24 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-१६-औषध एवं वैद्य कैसा हो?

गतांक से आगे..................  यथा विषं यथा शस्त्रं यथाग्निरशनिर्यथा. तथौषधमविज्ञातं विज्ञातममृतम यथा (१२४) अमृत और विष औषध- बिना जागा हुआ औषध, वैसा ही है, जैसे विष,या जैसे आग, या जैसे बिजली है. वे बिना ज्ञान के ही मृत्यु का कारण होते हैं. और विशेष रूप से जान हुआ औषध अमृत जैसे होता है, जिस औषध के विषय में नाम, रूप, और गुणों का ज्ञान नहीं है, जानकारी नहीं है, या जान कर भी  दुरूपयोग होता है तो वह अनर्थकारी हो जाता है. उत्तम रीती से प्रयोग करने पर तो तीक्ष्ण विष भी उत्तम औषधि हो जाता है....
Continue Reading...

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-१5,सर्वोत्तम वैद्य

गतांक से आगे........... औश्धिर्नामरुपाभ्याम जानते ह्यजपा वने अविपाश्चैव गोपश्च ये चान्ये वनवासिन: (१२०) औषधियों के नाम और रूप तो वन में भेड़, बकरी गौवें चराने वाले गडरिये, और ग्वाले और अन्य जंगल में विचरण करने वाले जंगली आदमी भी जाना करते हैं. केवल नाम जान लेने और रूप रंग से औषधि पहचान लेने मात्र से कोई भी औषधियों के श्रेष्ठ प्रयोग का ज्ञाता नहीं हो जाता, जो व्यक्ति इन औषधियों का प्रयोग जाने, और इनका रूप पहचाने , वह "तत्व वेत्ता" कहा जाता है. इस पर भी जो भिगक (वैद्य) औषधियों को सब प्रकार से जाने...
Continue Reading...

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-१४, शोधनीय वृक्ष

गतांक से आगे ........................ अथापरे त्रयो वृक्षा: पृथग्ये फलमुलिभी: स्नुहयकार्शमंत कस्तेशामिदं कर्म पृथक पृथक (११४) शोधनीय वृक्ष - फल और मूल वाले पूर्वोक्त वृक्षों से भिन्न ये तीन वृक्ष और हैं १ स्नुही(थोर) २ अर्क (आकडा) ३ अश्मंतक (कोविदार, पाषाण भेद, पत्थर चट्टा) इनके कार्य भेद पृथक हैं. अश्मंतक वामन में, थोर का दूध विरेचन (दस्त) करने के काम में और अर्क का दूध वमन एवं विरेचन दोनों कामों में लिया जाता है. इसके अत्रिरिक्त तीन  वृक्ष और कहे जाते हैं. जिनकी छाल हितकारी है. १ पूतीक(कंटकी...
Continue Reading...

बुधवार, 21 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-१३,दूध के प्रकार एवं उसके गुण

गतांक से आगे................... अत: क्षिराणी वक्ष्यन्ते कर्म चैवां गुणाश्च ये अविक्षीरमजाक्षीरं गोक्षीरम माहिषम च यत.(११५) दूधों के गुण - अब दूधों का वर्णन किया जायेगा.उनके कार्य उपयोग एवं गुण कहे जायेंगे. दूध के प्रकार भेड़ का दूध बकरी का दूध गौ का दूध भैंस का दूध ऊंटनी का दूध हस्तिनी का दूध घोडी का दूध मानवी (नारी) का दूध दूध के सामान्य गुण - दूध प्राय: मधुर, स्निग्ध(चिकना), शीत, स्तन्य(स्तनों में दूध बढ़ाने वाला), प्रीमण तृप्त करने वाला, वृहण (मांस बढ़ाने वाला) वृष्य (वीर्य वर्धक रति शक्ति बढ़ाने...
Continue Reading...

शनिवार, 17 अक्टूबर 2009

समस्त ब्लॉग वाणी परिवार एवं ब्लोगर परिवार को दीवाली की हार्दिक बधाई-ललित शर्मा

समस्त ब्लॉग वाणी परिवार एवं ब्लोगर परिवार को दीवाली की हार्दिक बधाई-ललित शर्मा ...
Continue Reading...

खील पताशे मिठाई और धुम धड़ाके से, हिल-मिल मनाएं दीवाली का त्यौहार

  निश  दिन  खिलता रहे आपका परिवार चंहु दिशि फ़ैले आंगन मे सदा उजियार खील पताशे मिठाई और धुम धड़ाके से हिल-मिल  मनाएं  दीवाली  का त्यौहार...
Continue Reading...

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-१२ "मुत्रों के विशेष गुण एवं उपयोग

गतांक से आगे.......... अविमूत्रं सतिक्तं स्यतिस्निग्धं पित्ताविरोधी.च. आजं कषायमधुरं पथ्यं दोषान्नीहन्ति  च (१००) मुत्रों के विशेष गुण- भेड़ का मूत्र तिक्त (कडुआ) रस का होता है, वह चिकना, और पित्त शामक है, बकरी का मूत्र , कसैला, मधुर, और सेवन करने में पथ्य है. गौ का मूत्र मधुर और दोषों का नाशक और छोटे-छोटे कीडों और कृमियों का नाश करता है. पान करने पर खाज के रोग  पामा या  चुम्बल,और एक्जीमा आदि का नाश करता है और वातादी से उत्त्पन्न उदर के रोगों में भी हितकारी है. भैंस का मूत्र बवासीर,...
Continue Reading...

बुधवार, 14 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-११ -मूत्र एवं मूत्र गुण

गतांक से आगे.... मुख्यानि यानि ह्यष्टनि सर्वणयात्रेयशासने  . अविमुत्रमजामुत्रम गोमूत्रं माहिर्ष तथा. (९३) हस्तिमूत्रं  मथो दट्रस्य ह्यस्य च खरस्य च. आठ मूत्र- आप मुझसे उन आठ सूत्रों का उपदेश ग्रहण करो जो पुनर्वसु आत्रेय के उपदिष्ट शास्त्र में मुख्य है. १. भेड़ का मूत्र, २..बकरी का मूत्र, ३.गाय का मूत्र, ४.भैंस का मूत्र, ५. हाथी का मूत्र, ६.ऊंट का मूत्र, ७.घोडे का मूत्र, ८. गधे का मूत्र. ये आठ मूत्र हैं. इसमें उत्तम गौ, बकरी, भैंस, हैं. इनमे मादा जंतुओं का मूत्र उत्तम कहलाता है. गधा,ऊंट,...
Continue Reading...

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-१० लवण क्या हैं?

गतांक से आगे.............. आलेपनार्थे युज्यन्ते स्नेहस्वेदविधौ तथा. अधोभागोर्ध्वभागेषु निरुहेष्वनुवासने  (९०) अभ्यअंजने  भोजनार्थे शिरसश्च  विरेचने. शस्त्रकर्मेणि बस्त्यर्थम अंज्नोत्सादनेशु च. (९१) लवणों के विषय में चर्चा. पॉँच लवण- सौन्चल (सौन्चल, काला नमक) सैन्धव (सेंधा नमक) विड लवण, औद्भिद लवण (रह) और समुद्र. जो समुद्र के जल से प्राप्त होता है.और(सम्बह्र) यह पॉँच प्रकार के नमक है. पृकृति एवं उपयोग-ये पांचो नमक स्निग्ध (चिकने), उष्ण (गर्म) तीक्ष्ण (तीखे), और दीप्नीयातम अर्थात...
Continue Reading...

सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-९ महास्नेह

गतांक से आगे............स्नेहना जीवना वल्या वर्णोंपचयवर्धना:,स्नेहा ह्येते च विहिता वातपित्तकफापहा: (८७)चार महास्नेह- घी, तेल, वसा (चर्बी), और मज्जा ये चार प्रकार के  स्नेह अर्थात चिकने पदार्थ हैं.इनका प्रयोग पीने, मालिश करने, बस्ती (गुदा मार्ग से लेने), एवं नाक द्वारा नस्य लेने में होता है.  इनके गुण - ये चारों शरीर में चिकनाई पैदा करते...
Continue Reading...

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-८ फलिनी औषधियां

गतांक से आगे... श्वेता ज्योतिष्मती चैव योज्या शीर्ष विरेचने. एकादशावशिष्टा या: प्रयोज्यास्ता  विरेचन:(७९) इत्युक्ता नामकर्मभ्यम मूलिन्य:, सोलह मुलिनियों का प्रयोग - शण पुष्पी,विम्बी, हैमवती (वचा), इनका प्रयोग मूल वमन में किया जाता है, श्वेता (सफ़ेद कोयल) और ज्योतिष्मती (मॉलकांगनी) इनका मूल शिरोविरेचन  के लिए प्रयोग करना चाहिए. शेष जो ग्यारह...
Continue Reading...

रविवार, 11 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता- ७, द्रव्यों का वर्गीकरण

गतांक से आगे- मूलिन्य: शोड़शैकोना: फलिन्यो विंशति स्मृता:. महास्नेहश्च चत्वार: पंचैव  लवणानि  च. (७४) द्रव्यों का वर्गीकरण- जिन वनस्पतियों के मूल प्रयोग में लाये जाते हैं,उसे मुलीनी कहते हैं, ये संख्या में १६(सोलह) हैं, जिनके फल प्रयोग में लाये जाते हैं.वे संख्या में १९ (उन्नीस) हैं. महास्नेह (उत्तम कोटि के चिकने पदार्थ) चार हैं. लवण जाती...
Continue Reading...

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-६, द्रव्य क्या हैं? वर्गीकरण

गतांक से आगे............ किन्चिद्दोषप्रशमनं किन्चित्द्धातु प्रदुषणम.  स्वस्थवृत्तौ हितं किंचित त्रिविधं द्रव्य मुच्यते (६७) अब आगे हम द्रव्यों के विषय में चर्चा करेंगे, त्रिविध द्रव्य- द्रव्य तीन प्रकार के होते हैं १.कोई द्रव्य दोष को शांत करता है,२. कोई द्रव्य धातुओं को दूषित करता है,३.कोई द्रव्य स्वस्थ रहने में हितकारी है , इस प्रकार से द्रव्यों...
Continue Reading...

शनिवार, 10 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-५ वात-पित्त-कफ के गुण

गतांक से आगे- रुक्ष: शीतो लघु: सुक्ष्मश्चलोSथ विषद: स्वर: विपरीतगुनैद्रव्यर्मरुत: स्न्प्रशाम्यती  (५९) साधनं नत्व्साध्यानाम व्याधिनामुपदिश्यते भुयाश्चातो यथाद्रव्यम गुणकर्म प्रवक्ष्यते (६३) वात के गुण -वायु रुक्ष(रुखा) शीत, लघु, सूक्ष्म, चल, विषद और खर होता है, वह इससे विपरीत गुण वाले द्रव्यों से शांत हो जाता है. पित्त के गुण- पित्त स्नेह सहित(चिकना),...
Continue Reading...

बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता (४)-त्रिदोष क्या हैं?

गतांक से आगे-- निर्विकार: परस्वात्मा सत्त्वभूतगुणेइन्द्रियों, चैतन्ये कारणम नित्यो द्रष्टा पश्यति हि क्रिया: (५६) अर्थात मन एवं शरीर दोनों से परे सूक्ष्म आत्मा स्वत: निर्विकार है,उसमे रोग आदि नहीं होते, वह आत्मा ही सत्व अर्थात मन,भूतों के गुण,शब्द गंध, रूप रस, स्पर्श और इनके ग्रहण करने वाली इन्द्रियों के साथ रहकर शरीर की चेतना का मूल कारण है,वह आत्मा...
Continue Reading...

सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-3

गतांक से आगे....चरक एवं चरक संहिता..सर्वदा सर्वभावानाम सामान्यं वृद्धि कारणं, ह्रासहेतुर्विशेशाश्च प्रविर्त्ति रुभयस्य तू(४४) भावार्थ-सदा सब पदार्थों का द्रव्य,गुण और करम सामान्य (सामान होना) ही वृद्धि  का कारण है, और विशेष अर्थात भिन्न या विपरीत होना ही ह्रास अर्थात कम हो जाने का कारण है, वृद्धि और ह्रास (बढ़ने और घटने)  दोनों में वस्तुत:...
Continue Reading...

महर्षि चरक एवं चरक सहिंता-2

संहिताकार कहते है, तस्मै प्रोवाच भगवानायुर्वेदम शतक्रतु: पदैर्ल्पैर्मतिम बुद्ध्वा विपुलां परमर्शये.२३ हेतु लिंगौधज्ञानम स्वस्थातुरपरायणं, त्रिसूत्रं शाश्वतं पुण्यं बुवुधे यं पितामह: 24  महर्षि चरक एवं चरक सहिंता पर आगे बढ़ते है,आयुर्वेद का ज्ञान इंन्द्र ने ऋषि भारद्वाज को विशाल मति जान स्वल्प शब्दों में ही उपदेश किया था जिसमे रोग होने के कारण,रोगों...
Continue Reading...

रविवार, 4 अक्टूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता-1

चरक और चरक संहिता ये नाम वर्षों से सुनता आया था कई वर्षों पूर्व एक बार वैद्य विशारद एवं आयर्वेदरत्न की उपाधि हेतु पढने का अवसर मिला तो उसमे भी  ऋषि चरक का उल्लेख एवं सूत्र मिलते है,(मै चिकित्सा कार्य नहीं करता लेकिन अध्यन की प्यास आज भी निरंतर रहती है),जो बहुत ही उपयोगी है,आज हमारी आयुर्वेद चिकित्सा जो प्राचीन मुख्य चिकित्सा के रूप में मानी-जानी...
Continue Reading...
 

एक खुराक यहाँ भी

चिट्ठों का दवाखाना

चिट्ठाजगत

हवा ले

www.blogvani.com

Blogroll

Site Info

Text

ललित वाणी Copyright © 2009 WoodMag is Designed by Ipietoon for Free Blogger Template