बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

महर्षि चरक एवं चरक संहिता 20 - विरेचक द्रव्य

गतांक से आगे..........
त्रिवृताम् त्रिफलाम दंतीं निलिनीम सप्त्लाम वचाम
कम्पिल्कम गवाक्षीं च क्षीरणिमुदकीर्यकाम (९)

विरेचक द्रव्य -- त्रिवृता (त्रिवि, निसोत), त्रिफला, (हरड, बहेडा, आंवला), दंती (जमाल घोटा), नीलिनी (नील), सप्तला(सातला), वचा (वच), कम्पीलक( कमीला) गवाक्षी (इन्द्रायण), क्षीरणी (हरी दुधली, दुग्धिका, दूधी, चोक), उद्कीर्यका( वृक्ष करंज, कंजा, नाटा, करंज, करन्जुआ), पीलू, आरग्वध, (अमलतास) द्राक्षा (मुनक्का), द्रवन्ति (बड़ी दंती, जमाल घोटे का बड़ा भेद), निचुल (हिज्जल फल, समुद्र फल),  इन औषधियों का प्रयोग पक्काशय के विद्यमान दोष को विरेचन द्वारा बाहर निकलने  के लिए करें, इनमे से त्रिवृत, दंती, नीलिनी, सातला, वाच, इन्द्रायण, दूधी, बड़ी दंती, इनकी जड़ और त्रिफला, कमीला , करंज, पीलू, अमलतास, दाख, समुद्र फल, इनका फल प्रयोग में आता है.
त्रिवृत सबसे उत्तम विरेचन कारी द्रव्य है. पक्काशय गत दोष का तात्पर्य है, पक्काशय में जो दुष्ट पित्त, या कफांश है, जिसका विरेचन द्वारा निकलना उचित हो,
 जारी है..............

1 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला on 27 अक्तूबर 2009 को 10:26 am बजे ने कहा…

ीअच्छी जानकारी धन्य्वाद्

 

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