गतांक से आगे...........
मदनं मधुकं निम्बं जिमूतं कृतवेधनं.
पिपलीकूटजेक्ष्वाकूणयेला धामार्गवाणी (७)
उपस्थिते श्लेषमपित्ते व्याधावामाशयाश्रये
वमनार्थम प्रत्यंजीत भीषग्देहमदुषयम (८)
वमन कारक द्रव्य- मदन (मैन फल), मधुक (मुलैठी) निम्ब (नीम), जीमूत (कडुई, तुरई, देवदाली), कृत्वेधन (तोरई) पीप्प्ली (पिपली), कूताज (कूड़ा ,इन्द्रजौ) इक्ष्वाकु ( कडुआ तुम्बा), एला ( बड़ी इलायची), धामागर्व (कडुई तुरई) इन औषधियों अमाशय में श्लेषपित्त की व्याधि हो, तब वैद्य इस प्रकार करे कि देह में व्याधि उत्पन्न ना हो.
जारी है................
सोमवार, 26 अक्टूबर 2009
महर्षि चरक एवं चरक संहिता-18- अध्याय २-वमन कारक द्रव्य
Author: ब्लॉ.ललित शर्मा
| Posted at: 8:00 am |
Filed Under:
चरक एवं चरक संहिता
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1 टिप्पणियाँ:
अच्छी जानकारी, जारी रहिये.
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