गतांक से आगे..........
अविमूत्रं सतिक्तं स्यतिस्निग्धं पित्ताविरोधी.च.
आजं कषायमधुरं पथ्यं दोषान्नीहन्ति च (१००)
मुत्रों के विशेष गुण- भेड़ का मूत्र तिक्त (कडुआ) रस का होता है, वह चिकना, और पित्त शामक है, बकरी का मूत्र , कसैला, मधुर, और सेवन करने में पथ्य है. गौ का मूत्र मधुर और दोषों का नाशक और छोटे-छोटे कीडों और कृमियों का नाश करता है. पान करने पर खाज के रोग पामा या चुम्बल,और एक्जीमा आदि का नाश करता है और वातादी से उत्त्पन्न उदर के रोगों में भी हितकारी है. भैंस का मूत्र बवासीर, शोथ, और उदर रोगों का नाशक, स्वाद में खारा, और सर अर्थात दस्त लाने वाला होता है. हाथी का मूत्र नमकीन, कृमियों एवं कुष्ठ रोगों को नाश करता है, कब्ज अर्थात मलावरोध और मूत्रावरोध, कफ रोग (बलगम बढ़ना) और बवासीर की चिकित्सा में उपयोगी है. ऊंट का मूत्र स्वाद में तिक्त (कडुआ) और श्वास (दमा) कास (खांसी) और अर्श (बवासीर) का नाश करने वाला है. घोडों का मूत्र स्वाद में तिक्त (कडुआ) और कटु (चर्परा) और कोढ़, व्रण (फोड़ा) और विष का नाशक है, गधे का मूत्र अपस्मार (हिस्टीरिया, मिर्गी), उन्माद,(पागलपन), गृह (दांत लगाना, बांयटे आना) इनका नाश करता है. इस प्रकार ये आठ तरह के मुत्रों का विशेष गुण एवं उपयोग है.
राज निघंटु में- राज निघंटु में गो मूत्र को मतिप्रद= बुद्धि वर्धक और पवित्र लिखा है. अजामूत्र को नाडी विषात्तिन्जित अर्थात नर्वस सिस्टम तक गए विष को नाश करने वाला बताया गया है. इसको न्युरालिया पर प्रयोग करके देखना चाहिए. भेड़ के मूत्र को प्रमेह नाशक बताया गया है. भैंस के मूत्र को अक्षिदोषकारक लिखा है. हस्ति मूत्र को वातभूतनुत कहा है. गधे के मूत्र को भूतकम्पोंमादहर लिखा है. वृध्वाग्भट ने बकरी के मूत्र को कर्णशूलहर लिखा है.
जारी है.......................
गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009
महर्षि चरक एवं चरक संहिता-१२ "मुत्रों के विशेष गुण एवं उपयोग
Author: ब्लॉ.ललित शर्मा
| Posted at: 9:37 am |
Filed Under:
"चरक-संहिता",
"ललित-वाणी",
चरक
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5 टिप्पणियाँ:
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है, आभार।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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बहुत बढ़िया
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बहुत बढ़िया
बहुत बढ़िया जानकारी
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