चरक और चरक संहिता ये नाम वर्षों से सुनता आया था कई वर्षों पूर्व एक बार वैद्य विशारद एवं आयर्वेदरत्न की उपाधि हेतु पढने का अवसर मिला तो उसमे भी ऋषि चरक का उल्लेख एवं सूत्र मिलते है,(मै चिकित्सा कार्य नहीं करता लेकिन अध्यन की प्यास आज भी निरंतर रहती है),जो बहुत ही उपयोगी है,आज हमारी आयुर्वेद चिकित्सा जो प्राचीन मुख्य चिकित्सा के रूप में मानी-जानी जाती है वो एक वैकल्पिक चिकित्सा के नए सरकारी नामकरण से जूझ रही है, एलोपैथिक चिकित्सा ही मुख्य चिकित्सा मानी जाती है,कई वर्षों से आयुर्वेद चिकित्सा सम्बन्धी ग्रंथो का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है,ये हमारी प्राचीन विद्या है जिसे बचाना बहुत ही आवश्यक है,मुझे ऋषि चरक का एक ग्रन्थ मिला जिससे प्राचीन गुरुकुलों में आयुर्वेद चिकित्सा के विद्यार्थियों को अध्यापन करया जाता था, उसमे से कुछ चरक कि चिकित्सा से सम्बंधित अंश आपके पाठन हेतु प्रसतुत कर रहा हूँ,जिसमे बीमारियाँ उनका लक्षण और उनका इलाज रसायन शास्त्री चरक ऋषि के द्वारा जो अपने शिष्यों को बताया गया वो आपके लिए प्रस्तुत है आप लाभ अवश्य उठाएं-चरक संहिता का दूसरा नाम अग्निवेश संहिता भी है, ये आयुर्वेद कि गुरु परंपरा है, जिस ग्रन्थ से मैं ये उद्धरण दे रहा हूँ उसके डा.विनय वशिस्ठ एवं पंडित जयदेव शर्मा विद्यालंकार मीमांसातीर्थ हैं,ये सम्वत २०११ में प्रकाशित हुआ था, जिसके प्रकाशक हैं आर्य साहित्य मंडल अजमेर,और मुद्रक हैं दी फाईन आर्ट प्रिंटिंग प्रेस अजमेर,चरक की चिकित्सा से सम्बंधित अंश आपके पाठन हेतु प्रसतुत कर रहा हूँ आशा है की आपको पसंद आयेंगे, इसका प्रथम अध्याय के प्रथम सूत्र से आरम्भ कर रहा हूँ,
अथातो दीर्घजिवितीयमध्याय्म व्याख्या स्याम:,(१)
इति: स्माह भगवानत्रेय: (२)
अर्थात अब इससे आगे "दीर्घजिवितीय" अध्याय का उपदेश करंगे,इसी प्रकार भगवान आत्रेय ने उपदेश किया था.
१.चरक संहिता का दूसरा नाम अग्निवेश संहिता भी है,१-२ दोनों सूत्र अग्निवेश ने कहे हैं, भगवान पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश ,भेल ,जातुकर्न्य,पराशर, हारित, और क्षारपाणी को को उपदेश किया था.इन्होने अपनी -अपनी पृथक संहिताएँ रची, इस अध्याय का नाम"दीर्घजिवितीय" अध्याय है
२.अथ पद मंगलार्थ भी है,पूर्व शास्त्रकारों ने शास्त्र के आदि में प्रयोग किया है,जैसे-अथ योगानुशासनम्.योग शास्त्र . अथ शब्द का अर्थ शिष्य कि जिज्ञासा के अनंतर भी है,
३.दक्ष प्रजापति ने ब्रम्हा से उपदेश के अनुसार ही आयुर्वेद का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया,उस से दोनों अश्विनी कुमारों ने,अश्विनियों से केवल भगवान इन्द्र ने ही आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था,इसी करना ऋषियों के कथन से प्रेरित होकर ऋषि भारद्वाज आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त करने शिष्य रूप में इन्द्र के पास गये थे,
४.जब शरीर धारियों के तप,उपवास, अध्ययन,और ब्रम्हचर्य आदि व्रतों और आयु अर्थात सुखपूर्वक जीवन में विघ्न करने वाले रोग प्रकट हुए, तब प्राणियों पर दया को प्रकट करके पुण्य कर्मो को करने वाले बड़े -बड़े ऋषि लोग हिमालय के पास शुभ सुन्दर स्थान में गये,(इस शास्त्र का प्रयोजन धातुसाम्य है,रोग का दूर होना और स्वस्थ का स्वस्थ बना रहना धातु साम्य है,)जो ऋषि हिमालय की वादियों में गए उनके नाम इस प्रकार हैं, अंगिरा, जमदग्नि, वसिष्ठ , कश्यप , भृगु, आत्रेय, गौतम, सांख्य, पुलत्स्य, नारद, असित, अगस्त्य, वामदेव, मार्कण्डेय, आश्वलायन, पारीक्षी, भिक्षु आत्रेय, भारद्वाज, कपिंजल, विश्वामित्र, आस्वराथ्य, भार्गव च्वयन अभिजित, गार्ग्य, शाण्डिल्य, कौन्दिन्य, वार्क्षी, देवल, गालव, संक्रित्य, वैजवापी, कुशिक, बादरायण, बडिश, शरलोमा, काप्य, कात्यायन, कंकायण, कैकशेय, धौम्य, मारीचि, काश्यप,शर्कराक्ष, हिरण्याक्ष, लौगाक्षी, पैन्गी, शौनक, शाकुनेय, मैत्रेय, मैम्तायानी, वैखानसगण, और वालखिल्यगण एवं इस कोटि के अन्य भी बहुत से महर्षिगण जो ब्रम्हा अर्थात वेद ज्ञान के समुद्र, यम् और नियम और तप के सागर थे जो आहुति पाने वाले प्रदीप्त आग के समान तेजस्वी थे, वहां सुख से बैठ कर इस प्रकार पुण्य कथा-वार्ता (आयुर्वेद)करने लगे,
कल आयुर्वेद के के लक्षणों के विषय में पाठ है, आज मात्र ऋषियों के विषय में चर्चा हुयी है,
2 टिप्पणियाँ:
Very good attempt. It is useful site for those who want to acquire knowledge about ancient India. Please accept my thanks.
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