गतांक से आगे...........
पाटलीं च अग्नि मन्थम च बिल्वं श्योनाकमेव च.
काश्मर्यम शाल पर्णी च पृश्नीपर्णी निदिग्धिकाम (११)
वस्ति देने योग्य द्रव्य- पाटला (पाढ़, पाढ़ल), अग्नि मन्य(अरणी), विल्व (बेल, बेलगिरी), श्योनाक (अर्लू, टेंटू, सोना पाठा), काश्मर्थ (गाम्भारी, धमार),शाल पर्णी ( सालवन), पृश्नीपर्णी ( पृष्टपर्णी,पीठापर्णी, पिठ्वनी), निदिग्धा (छोटी कटेरी, कन्तेली, भट कटैया), बला(खरैटी), श्र्वदंष्ट्रा (गोखरू), वृहती (बड़ी कंटेली ), एरंड, पुनर्नवा (सांठी, आटा-साटा), यव (जौ) कूल्त्थ (कुल्थी) कोल (बदर,बेर) गुडूची (गिलोय, गुलुच) मदन (मैनफल) पलाश (ढाक) कतृण (गंधतृण, रोहिषतृण), और चार स्नेह (घी, तेल, चर्बी और मज्जा) और पांचों प्रकार के लवण तथा मल मूत्र के अवरोध में आस्थापन अर्थात वस्ति कर्म के लिए परयोग करें.
जारी है.
बुधवार, 28 अक्टूबर 2009
महर्षि चरक एवं चरका संहिता-19- वस्ती देने योग्य द्रव्य
Author: ब्लॉ.ललित शर्मा
| Posted at: 7:04 am |
Filed Under:
चरक एवं चरका संहिता
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1 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया उम्दा जानकारी ....
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