मूलिन्य: शोड़शैकोना: फलिन्यो विंशति स्मृता:.
महास्नेहश्च चत्वार: पंचैव लवणानि च. (७४)
द्रव्यों का वर्गीकरण- जिन वनस्पतियों के मूल प्रयोग में लाये जाते हैं,उसे मुलीनी कहते हैं, ये संख्या में १६(सोलह) हैं, जिनके फल प्रयोग में लाये जाते हैं.वे संख्या में १९ (उन्नीस) हैं. महास्नेह (उत्तम कोटि के चिकने पदार्थ) चार हैं. लवण जाती के द्रव्य ५(पॉँच ) हैं. मूत्र ८ (आठ), और दूध भी ८ (आठ) हैं. शोधन अर्थात वमन आदि द्वारा शरीर के मल शोधन करने वाले केवल ६ वृक्ष हैं. जिनका आत्रेय पुनर्वसु आदि ने उपदेश किया है. इनको जो विद्वान् रोग के अवसरों पर प्रयोग करना जानता है,वही आयुर्वेदवित् अर्थात आयुर्वेद का उत्तम ज्ञाता है.
इन वर्गों का विस्तार- १६- मुलीनी- १. हस्तीदंती (नागदंती) २.हैमवती(वचा) ३.श्यामा( श्याम या नीली जड़ की त्रिवृत) ४.त्रिवृत (निशोथ, निशोत, लाल जड़ की त्रिवृत पंजाबी में तिवि या त्रिवि) ५.अधोगुडा(वृद्धदारक विधारा) ६.सप्तला-(सप्तला,शिकाकाई) ७. श्वेतनामा (श्वेत, अपराजिता, सफेद कोयल) ८.प्रत्यक श्रेणी ( दंती, जमाल घोटा) ९. गवाक्षी (इन्द्रायण) १०. ज्योतिष्मती (मॉल कांगनी) ११.विम्बी ( जिसके विम्ब नामक लाल फल लगता है, कड़वी, कंदूरी) १२.शण पुष्पा (झंझनिया, घटारंच) १३. विषाणिका ( आवर्तकी, मरोड़फली या मेष श्रृंगी) १४. अजगंधा ( काकन्दी, अजमोद, या ढकु) १५. द्रवंत: (दंती का एक भेद , एक प्रकार का जमाल घोटा) और १६.क्षिरनी (स्वर्णक्षीरी, चोक, या दूधी, हिरवी)
जारी है...................
1 टिप्पणियाँ:
सुंदर और सार्थक जानकारी भरी पोस्ट..........
अभिनन्दन !
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