तस्मै प्रोवाच भगवानायुर्वेदम शतक्रतु:
पदैर्ल्पैर्मतिम बुद्ध्वा विपुलां परमर्शये.२३
हेतु लिंगौधज्ञानम स्वस्थातुरपरायणं,
त्रिसूत्रं शाश्वतं पुण्यं बुवुधे यं पितामह: 24
महर्षि चरक एवं चरक सहिंता पर आगे बढ़ते है,आयुर्वेद का ज्ञान इंन्द्र ने ऋषि भारद्वाज को विशाल मति जान स्वल्प शब्दों में ही उपदेश किया था जिसमे रोग होने के कारण,रोगों के लक्षण एवं उनको शांत कारने वाली औषधियों का ज्ञान है,जिसका आश्रय स्वस्थ एवं रोगी दोनों लेते हैं,जिसका ज्ञान पिता मह ब्रम्हा को सबसे पहले प्राप्त हुआ था, रोग के कारक, लक्षण (डायग्नोसिस) और औषध (मेडीसिन) यही तीन सूत्र,तीन स्कंध,तीन शाखाएं हैं, इसके प्रथम उपदेष्टा पितामह ब्रम्हा हैं, उन्ही से आयुर्वेद परमपरा से इन्द्र को प्राप्त हुआ था.
आयुर्वेद के लक्षण- हिताहितं सुखं दू:ख मायुस्तस्य हिताहितम.
मानम च तंच यत्रोक्त्मयुर्वेद: स उच्यते. ४१
अर्थात-हित और अहित, सुख और दुःख ,जीना,आयु के लिए हितकर और अहितकर आयु का मन (परिमाण) यह सब जिस शास्त्र में उपदेश किया गया है,उसे आयुर्वेद कहा जाता है. शरीर,इन्द्रिय,सत्व (मन) और आत्मा का संयोग अर्थात एक साथ व्यवस्थित रहना "आयु" कहलाता है, धारि, जीवित, नित्यग अनुबंध "आयु" के ही अनेक पर्याय बताये गये है, जिनसे आयु का बोध कराया जाता है, जो शरीर को सड़ने ना देकर स्थिर रखता है, उसे "धारि" कहा जाता है,ये प्राणियों को जीवित रखता है, प्राण धारण कराता है,इससे आयु को "जीवित" कहते है, शरीर क्षणिक होने पर उसे नित्य स्थिरवत प्राप्त होता है, इससे वह आयु 'नित्यग"है, उतरोत्तर शरीर की स्थिति परम्परा को बनाये रखने से "अनुबंध" कहलाता है, उस आयु का पुण्यतं,अति पवित्र वेद अर्थात ज्ञान सब ज्ञानमय वेद जानने वालों का अभिमत है,वे सब उसका आदर करते हैं, आयुर्वेद का उपदेश भूलोक(मनुष्यों)देवलोक दोनों के हितार्थ उपदेश किया जावेगा
जारी है................
6 टिप्पणियाँ:
आपने बहुत अच्छी लेखमाला शुरू की है!
महर्षि चरक के विषय में आज लोग बहुत कम जानते हैं जबकि उन्होंने ही विश्व को शल्य क्रिया से परिचित करवाया।
धन्यवाद अवधिया जी, महर्षि चरक एक रसायन शास्त्रग्य इन्होने विभिन्न औषधियों से यौगिक मिश्रण तैयार कर उससे शारीरिक स्वथता को एक नया आयाम दिया, शल्य चिकित्सक सुश्रुत थे प्रथमत:,
जी बिलकुल में ललित जी से सहमत हूँ !
प्रथमत: शल्य चिकित्सक सुश्रुत थे !
दुनिया के प्रथम शल्य चिकित्सक भारत से थे !
ललित जी क्या आप मुझे अपराजिता औषधि का स्वरूप , रस , गुण , वीर्य ,विपाक , दोषकर्म , प्रयोज्यांग , विशिष्ट योग , औषधि की प्रयोग मात्रा बता सकते है !
कृपया जल्दी बताइयेगा !
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