मुख्यानि यानि ह्यष्टनि सर्वणयात्रेयशासने .
अविमुत्रमजामुत्रम गोमूत्रं माहिर्ष तथा. (९३)
हस्तिमूत्रं मथो दट्रस्य ह्यस्य च खरस्य च.
आठ मूत्र- आप मुझसे उन आठ सूत्रों का उपदेश ग्रहण करो जो पुनर्वसु आत्रेय के उपदिष्ट शास्त्र में मुख्य है. १. भेड़ का मूत्र, २..बकरी का मूत्र, ३.गाय का मूत्र, ४.भैंस का मूत्र, ५. हाथी का मूत्र, ६.ऊंट का मूत्र, ७.घोडे का मूत्र, ८. गधे का मूत्र. ये आठ मूत्र हैं. इसमें उत्तम गौ, बकरी, भैंस, हैं. इनमे मादा जंतुओं का मूत्र उत्तम कहलाता है. गधा,ऊंट, हाथी और घोड़ा इनमे नर का मूत्र हितकारी है.
भावप्रकाश में मानव का मूत्र भी कहा गया है, साधारणत: कहा जाये तो नर मादा किसी का भी मूत्र ले सकते हैं. पर विशेष रूप से जैसा कहा गया गया हो वैसा लेना चाहिए. चक्रपाणी के मत में मादाओं का मूत्र लघु होता है. नपुंसक का मूत्र अमंगल होने त्याज्य है.
मुत्रों के गुण- सब प्रकार के मूत्र स्वभाव से तीक्ष्ण ,उष्ण, रुक्ष, नमकीन, और कटुरस होते हैं. मूत्र उत्सादन (उचटना) अलेप्न (लेप करना) आस्थापन ( रुक्षवस्ति लेना), विरेचन (दस्त लेना), स्वेद (अफारा से पशीना लेना) इन उप्योंगों में आते हैं और अफारा, और अगद अर्थात विषहर औषध में और उदर रोंगों और अर्श (बवासीर) गुल्म (फोड़ा), कुष्ठ (कोढ़ आदि त्वचा रोग) किलास (श्वेत कोढ़) आदि रोगों में हितकारी हैं. इनका उपयोग उपनाह (पुल्टिस बनाने)में और परिषेक (घाव आदि धोने) में भी होता है. मूत्र स्वभाव से दीपन अर्थात अग्नि मंदता को दूर करता है. कीडों, कीटाणुओं का नाश करता है. पांडू रोग (पीला कोढ़) से पीडित रोगों के लिए मूत्र सबसे उत्तम औषध है. मूत्र अंत: प्रयोग द्वारा कफ का नाश करता है. पित्त को कम करता है. इस प्रकार ये सामान्यत: मुत्रों के गुण संक्षेप में कहे गये हैं. विस्तार से चर्चा आगे होगी.
जारी है................................
5 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छी जानकारी दे रहे हैं आप शुभकामनायें दीपावली की भी बहुत बहुत कामनायें
मूत्रौषधि पर बढिया जानकारी प्रदान कर रहे हैं आप ।
धन्यवाद्!
acchi jankari hai
20 sal purane mirgi rog apsmar k liye mutra chikitsa ka tarika kya h
Apki bdi kripa hogi
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