अथापरे त्रयो वृक्षा: पृथग्ये फलमुलिभी:
स्नुहयकार्शमंत कस्तेशामिदं कर्म पृथक पृथक (११४)
शोधनीय वृक्ष - फल और मूल वाले पूर्वोक्त वृक्षों से भिन्न ये तीन वृक्ष और हैं १ स्नुही(थोर) २ अर्क (आकडा) ३ अश्मंतक (कोविदार, पाषाण भेद, पत्थर चट्टा) इनके कार्य भेद पृथक हैं. अश्मंतक वामन में, थोर का दूध विरेचन (दस्त) करने के काम में और अर्क का दूध वमन एवं विरेचन दोनों कामों में लिया जाता है. इसके अत्रिरिक्त तीन वृक्ष और कहे जाते हैं. जिनकी छाल हितकारी है.
१ पूतीक(कंटकी करंग, लता करंज) २ कृष्णा गंध(शोमंजं, सहजना-मुनगा) और तिल्वक (शावर लोथ या पठानी लोथ). इसमें इसमें से पूतीक, पठानी लोथ का उपयोंग विरेचन में करना चाहिए. और कृष्णा गंध की त्वचा परिसर्प (एक्जीमा, चम्बल, पामा) सुजन, और अर्श (बवासीर) पर कहा जाता है. और इसका प्रयोग दाद, गांठ फूलना, फोड़ा फूलने में, कुष्ठ और एलर्जी में, और गर्दन की फूलती गांठों पर भी किया जाता है.विद्वान् लोगों को इन ६ वृक्षों का भली भांति अध्ययन करना चाहिए.
जारी है.....................................
1 टिप्पणियाँ:
pratyek wriksh ke bare men agar detail diya ho to hamen awagat karaayen
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