गतांक से आगे...........
अत एवौषधगनात्संकल्प्यमनुवासनम .
मरुपघ्नमिति प्रोक्तं संग्रह: पान्चकर्मिक (१४)
अनुवासन-जिन औषधियों का उपदेश बस्ती कर्म के लिए किया गया है, वात नाशक होने से उनका ही अनुवासन वस्ति के लिए भी प्रयोग करना चाहिए.
इस प्रकार नस्य, वमन, विरेचन, आस्थापन, अनुवासन, इन पांचों शोधन कर्मो के लिए संक्षेप में औषधियों का उपदेश कर दिया गया है.जिन रोगियों के शरीर में दोष संचित हों, उनको दूर करने के लिए स्नेहन और स्वेदन कराकर मात्र और काल का विचार करते हुए, शिरोविरेचन,वमन,विरेचन,निरुहण, और अन्वासन, इन पॉँच कर्मो का प्रयोग करें,क्योंकि युक्ति, योग, या उक्त कर्मों का प्रयोग मात्र और काल पर निर्भर है.सफलता प्रयोग पर आश्रित है. इस युक्ति (उचित प्रयोग) को जानने वाला वैद्य ही केवल द्रव्यादी के नाम और गुण जानने वालों से भी उपर प्रतिष्ठा पाता है.
पंच कर्म कराने से पहले स्नेहन एवं स्वेदन करना चाहिए.
जारी है...................
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