नवल धवल सूरज से आलोकित हो घर आँगन परिवार
नूतन वर्ष २०१० की आपको अशेष शुभकामनायें अपार
बाधाएं दूर हो जीवन की, नित प्रेम सुरभि का हो संचार
मन में करुणा व्यापे निस दिन बढे सुखों का कोषागार
महर्षि चरक एंव प्राचीन चरक संहिता उपदेश
गतांक से आगे............स्नेहना जीवना वल्या वर्णोंपचयवर्धना:,स्नेहा ह्येते च विहिता वातपित्तकफापहा: (८७)चार महास्नेह- घी, तेल, वसा (चर्बी), और मज्जा ये चार प्रकार के स्नेह अर्थात चिकने पदार्थ हैं.इनका प्रयोग पीने, मालिश करने, बस्ती (गुदा मार्ग से लेने), एवं नाक द्वारा नस्य लेने में होता है.
गतांक से आगे...
गतांक से आगे-
गतांक से आगे-
गतांक से आगे....चरक एवं चरक संहिता..सर्वदा सर्वभावानाम सामान्यं वृद्धि कारणं, ह्रासहेतुर्विशेशाश्च प्रविर्त्ति रुभयस्य तू(४४) भावार्थ-सदा सब पदार्थों का द्रव्य,गुण और करम सामान्य (सामान होना) ही वृद्धि का कारण है, और विशेष अर्थात भिन्न या विपरीत होना ही ह्रास अर्थात कम हो जाने का कारण है, वृद्धि और ह्रास (बढ़ने और घटने) दोनों में वस्तुत: प्रवृत्ति अर्थात चेष्टा या उपयोग ही कारण है, अर्थात-- मांसादी को बढ़ाने के लिए द्रव्य ही उपयोगी है,जिनमे मांस के घटक तत्व सामान रूप से हैं,उनके सेवन से मांस की वृद्धि और लघु धातुओं की हानि होती है.गुरु पदार्थों के सेवन से गुरु धातुओं में वृद्धि और लघु पदार्थों की हानि होती है-तेल,घी,मधु ये क्रम से वात-पित्त श्लेष्म को शांत करते हैं, उसी प्रकार वात-पित्त और कफ इनसे भिन्न गुण के पदार्थों के सेवन से शांत हो जायेंगे.इस प्रकार बढ़ी हुयी धातुओं के प्रकोप को शांत करने के लिए उससे विपरीत गुण के द्रव्य का उपयोग करना चाहिए, और सामान गुण वाले द्रव्यों के सेवन से न्यून हुई धातुओं को बढा लेना चाहिए, यही चिकित्सा का मूल तत्त्व है,
संहिताकार कहते है,
चरक और चरक संहिता ये नाम वर्षों से सुनता आया था कई वर्षों पूर्व एक बार वैद्य विशारद एवं आयर्वेदरत्न की उपाधि हेतु पढने का अवसर मिला तो उसमे भी ऋषि चरक का उल्लेख एवं सूत्र मिलते है,(मै चिकित्सा कार्य नहीं करता लेकिन अध्यन की प्यास आज भी निरंतर रहती है),जो बहुत ही उपयोगी है,आज हमारी आयुर्वेद चिकित्सा जो प्राचीन मुख्य चिकित्सा के रूप में मानी-जानी जाती है वो एक वैकल्पिक चिकित्सा के नए सरकारी नामकरण से जूझ रही है, एलोपैथिक चिकित्सा ही मुख्य चिकित्सा मानी जाती है,कई वर्षों से आयुर्वेद चिकित्सा सम्बन्धी ग्रंथो का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है,ये हमारी प्राचीन विद्या है जिसे बचाना बहुत ही आवश्यक है,मुझे ऋषि चरक का एक ग्रन्थ मिला जिससे प्राचीन गुरुकुलों में आयुर्वेद चिकित्सा के विद्यार्थियों को अध्यापन करया जाता था, उसमे से कुछ चरक कि चिकित्सा से सम्बंधित अंश आपके पाठन हेतु प्रसतुत कर रहा हूँ,जिसमे बीमारियाँ उनका लक्षण और उनका इलाज रसायन शास्त्री चरक ऋषि के द्वारा जो अपने शिष्यों को बताया गया वो आपके लिए प्रस्तुत है आप लाभ अवश्य उठाएं-चरक संहिता का दूसरा नाम अग्निवेश संहिता भी है, ये आयुर्वेद कि गुरु परंपरा है, जिस ग्रन्थ से मैं ये उद्धरण दे रहा हूँ उसके डा.विनय वशिस्ठ एवं पंडित जयदेव शर्मा विद्यालंकार मीमांसातीर्थ हैं,ये सम्वत २०११ में प्रकाशित हुआ था, जिसके प्रकाशक हैं आर्य साहित्य मंडल अजमेर,और मुद्रक हैं दी फाईन आर्ट प्रिंटिंग प्रेस अजमेर,चरक की चिकित्सा से सम्बंधित अंश आपके पाठन हेतु प्रसतुत कर रहा हूँ आशा है की आपको पसंद आयेंगे, इसका प्रथम अध्याय के प्रथम सूत्र से आरम्भ कर रहा हूँ,ललित वाणी Copyright © 2009 WoodMag is Designed by Ipietoon for Free Blogger Template